वीडियो जानकारी:<br />शब्दयोग सत्संग, 13.11.18, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत<br /><br />प्रसंग: <br />मोहिं प्रभु तुमसों होड़ परी।<br />ना जानौं करिहौ जु कहा तुम नागर नवल हरी॥<br />पतित समूहनि उद्धरिबै कों तुम अब जक पकरी।<br />मैं तो राजिवनैननि दुरि गयो पाप पहार दरी॥<br />एक अधार साधु संगति कौ रचि पचि के संचरी।<br />भ न सोचि सोचि जिय राखी अपनी धरनि धरी॥<br /><br />शब्दार्थ: हे प्रभु, मैंने तुमसे एक होड़ लगा ली है। तुम्हारा नाम पापियों का उद्धार करने वाला है लेकिन मुझे इस पर विश्वास नहीं है। आज मैं यह देखने आया हूँ कि तुम कहाँ तक पापियों का उद्धार करते हो। तुमने उद्धार करने का हठ पकड़ रखा है तो मैंने पाप करने का सत्याग्रह कर रखा है। इस बाजी में देखना है कि कौन जीतता है।<br />~ संत सूरदास<br /><br />गाहे न नेकी कार करदम मम ई चिनी अहवाल।<br />बदबख्त हम चु बखील गाफिल बेनजर बेबाक।<br />नानक बुगोयद जनु तुरा तेरे चाकरा पाखाक।<br /><br />शब्दार्थ: मैं सारी ज़िंदगी लालच में फिरता रहा, मैं बदी के ही ख्याल करता रहा। मैंने कभी कोई नेकी का काम नहीं किया। हे करतार! इस तरह का तो मेरा हाल है। हे करतार! मेरे जैसा कोई अभागा, निदंक, लापरवाह, बेबाक और ढीठ नहीं है। पर तेरा दास नानक तुझे कहता है कि मेहर कर ताकि मुझे तेरे सेवकों के चरणों की धूल मिले।<br />~ गुरु नानक देव<br /><br />कह 'रविदास' खलास चमारा,<br />जो हम सहरी सु मीतु हमारा।<br />शब्दार्थ: रविदास जी कह रहे हैं कि मैं चमार जाति का हूँ और जो भी स्वयं को ऐसा ही समझेगा, केवल वही हमारा मित्र हो सकता है।<br />~ संत रैदास<br /><br />~ संतों ने ख़ुद को पापी क्यों कहा है?<br />~ संतों का जीवन कैसा होता है? <br />~ गुरु के रूठने का क्या अर्थ होता है?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते